Sunday, July 12, 2009

अयोध्या मामला: अब तक २३ फाइलें हुई गायब

मायावती के राज में उत्तर प्रदेश सचिवालय से राम जन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद विवाद के अब तक २३ अहम् दस्तावेज गायब हो चुके हैं..ये कागजात १९४९ और उसके बाद के हैं के हैं जो मुकदमें की सुनवाई के लिए काफी अहम् माने जा रहे हैं..इन कागजातों की तलाश के लिए गृह विभाग ने शासनादेश तक जारी किया लेकिन दस्तावेज अभी तक हासिल नहीं हुए हैं..यूपी सरकार के होम सेक्रेटरी के गोपनीय पत्र से ये नया खुलासा हुआ है की गायब होने वाले कागजात की संख्या ७ नहीं बल्कि २३ तक पहुचगयी है

अयोध्या के राम जन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद विवाद से संबंधित २३ पुराने कागज़ात ढूँढने के लिए हड़कंप मचा हुआ है..इसकी तलाश के लिए राज्य के प्रमुख सचिव गृह फतह बहादुर सिंह ने एक परिपत्र जारी किया है जिसमें सभी विभागों से कहा गया है की अयोध्या मामले से जुड़े दस्तावेज जिसके पास भी हों उसको फौरन गृह विभाग को उपलब्ध कराये..इसके लिए ६ जून की तिथि अंतिम निर्धारित की गयी थी जो बीत चुकी है लेकिन वो कागजात गायब हैं..अब होम सेक्रेटरी जावीद अहमद ने इसी डेट में पत्र लिखा है और ये कबूला है की ७ नहीं बल्कि अबत तक २३ फाइलें गायब हो चुकी हैं जिनका कोई अत पता नहीं है..सरकार की तरफ से सभी अनुभागों और कोर्ट को ये सूचना दी जा चुकी है..ये सनसनीखेज खुलासा हुआ है ये कागज़ात दिसंबर 1949 में विवादित मस्जिद परिसर में श्रीराम की मूर्तियाँ रखने के तुंरत बाद राज्य सरकार और ज़िला प्रशासन के बीच हुए पत्राचार और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की ओर से भेजे गए तार से संबंधित हैं. सुन्नी वक्फ़ बोर्ड ने जो कागज़ात माँगे हैं इनमें चार पत्र 20 जुलाई 1949 और तीन सितंबर 1949 को राज्य सरकार की ओर से ज़िलाधिकारी और कमिश्नर फ़ैज़ाबाद को भेजे गए थे. दो पत्र फ़ैज़ाबाद के ज़िलाधिकारी की ओर से 26 और 27 दिसंबर 1949 को राज्य के मुख्य सचिव को भेजे गए थे.सातवाँ कागज़ तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की ओर से राज्य सरकार को भेजा गया टेलीग्राम और अयोध्या में विवादित स्थल पर मालिकाना हक़ से सम्बंधित महत्वपूर्ण दस्तावेज इसमें शामिल है..अगर इनकी मूल प्रति नहीं मिलती है तो अयोध्या विवाद पर कोर्ट चाहते हुए भी फैसला नहीं ले सकता..यानी मामला लाब्मे समय के लिए से लटक सकता है

हाईकोर्ट की विशेष पीठ ने कल राज्य के मुख्यसचिव अतुल गुप्त को इस मामले में व्यक्तिगत तौर पर तलब किया था.अदालत ने सुनवाई में इस बात पर नाराज़गी जताई कि राज्य सरकार पिछले पांच साल से इस मसले में हीलाहवाली कर रही है. बहस के दौरान अदालत ने कहा कि लगता है सरकार इस मामले में जल्दी फ़ैसला नहीं चाहती और मामले को लटकाए रखना चाहती है. कोर्ट ने सरकार को कड़ी फटकार लगायी है की अगर फाइलें गायब थी तो मुकदमा क्यों नहीं लिखवाया गया और दोषी लोगों के खिलाफ राज्य सर्कार ने कार्रवाई क्यों नहीं की...सरकार ने अदालत फिर समय माँगा है...लेकिन अब ये साफ़ हो गया है की वो फाइलें अब अतीत का विषय बन चुकी हैं...? क्या ये किसी साजिश का हिस्सा है ? इसका जवाब मिलना अभी बाकी है

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